Sunday, October 10, 2010

Bikhra

आवाज़ बिखरी है, ख्वाब बिखरें है
बेदर्द दुनिया में, कई शबाब बिखरें हैं

खोजती रहतीं हैं हर सिम्त निगाहें जिसको
वजूद उसके इस दिल पे हज़ार बिखरें हैं

मुदावा नहीं दर्दे-दिल का किसी के पास,
जहाँ में लेकिन चारागर बेशुमार बिखरें हैं

मरासिम बनाना चाहता था एक अजनबी से
रब्ते-अदायगी में जख्म हज़ार बिखरें हैं

मज़िले-इश्क की राह पे ऐ बिस्मले-इश्क
"फिगार" एक तू ही नहीं, कई फ़िगार बिखरे हैं

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