Wednesday, February 29, 2012

anony

नज़रें मिलते ही मुझसे तू रूठ जाती है
और तेरी नज़रों में मैं डूब जाता हूँ

तू इस जहां कि नहीं, एक परीजाद है
तुझे देखते ही ये सवाल आता है

तुझसे मिलने कि चाहत, पाने कि चाहत है
बस यही ख्याल मेरे दिल में आता है

एक बार आ समा जा मुझमे
देख कितना सुकून तुझे आता है

तेरी फुरक़त में जो दर्द मिलता है
जीस्ते-गम मुझसे दूर हो जाता है

बस तेरी आरजू है  इस दिल को
कुछ और नहीं मुझे समझ आता है     

ख्वाब और हकीक़त

सुबह-सुबह ख्वाब से वापसी के बाद देखा
रात की बची हुई शराब में एक चेहरा उतरा रहा है

झुक कर देखा अजनबी था, मगर अनजाना नहीं

रोज चौराहे पर उससे मिलता हूँ
पर पूछ नहीं पता "कौन हो तुम"

रोज सपनों में आकर बतियाते हो
हाल-चाल पूछते हो, झगड़ते भी हो
और रूठ भी जाते हो , लेकिन
फिर भी रोज आते हो सपनों में

हकीक़त में नज़ारा कुछ और ही होता है
न मैं तुम्हे देख पता हूँ, न ही तुम दिखना चाहती हो
किसी पहचान के बिना भी अनबन है

तुम रोज मुझसे नज़रें छुपाती हो
और उतना ही इन आँखों में बसती जाती हो
अजब बात है!!

आज रात जब सपनों में आओगी
तो पूछूँगा तुमसे, कि माज़रा क्या है ?
 

Saturday, February 25, 2012

अजनबी

बेक़रारी दी तुने इस क़दर अजनबी
करार से भी करार न मिला

इस मोड़ पे पहुंचा दिया तुने
मंजिल मिली पर रास्ता न मिला


तेरी आँखों में डूबने की हसरत है
ज़िन्दगी से कभी सुकून न मिला

न तेरे नाम का पता, न पते का पता
वजूद तेरा, इस दिल में ही मिला

रानाईये-इश्क की फ़िक्र नहीं मुझे
रुसवाईयों से दिले-मरहम मिला

बस अहसास दिला दे मुझे चाहती है
फ़िगार दुनिया से झगड़ता मिला

हाले-दिल

दिल के जज्बात को छुपायें कैसे
तुझसे हाले-दिल बताऊँ कैसे

तू अजनबी सही, फिर भी प्यारा है
ये अहसास तुझे दिलाऊं कैसे

इन हालातों में समझता हूँ तेरी कश्म-कश
पाकीज़ा है चाहत मेरी ये बताऊं कैसे

तेरे दीदार की है हर वक़्त हसरत
तुझे नज़रों के सामने लाऊँ कैसे

तेरी चाहत में जान भी दे सकता हूँ
बाद मरने के ये ज़ताओं कैसे

मुझे रुसवा न कर हकीकत के बाद
आशिकी का यकीन दिलाऊं कैसे

ज़िन्दगी हो जाए मेरे ख्वाबों की तरह
इस हसरत को हकीकत बनाऊं कैसे