बन्दे तेरे फिर रहे हैं करते दहशतगर्दी
कर रहे हैं तेरे नाम की गुंडागर्दी
खुदा कहाँ हो तुम?
कहीं मुंबई में दहशत, कहीं देहली में वहशत
कंधमाल में लुटती हैं माँ-बहनों की अस्मत
खुदा कहाँ तुम?
तेरे लिए तो हैं मंदिर,मस्जिद, गिरजाघर
बन्दे तेरे हैं बेहाल, भूखे और बेघर
खुदा कहाँ हो तुम?
मुल्कों में बट चुकी है दहर सारी
मजहबों में बट गयी इंसानियत सारी
खुदा कहाँ हो तुम?
लगता है फिक्रमंद तू दौलतमंदों का
है रहनुमा तू दहशत पसंदों का
बन गया कठपुतली तू सियासती दरिंदों का
आवाम ने पहन रखी है झूठी खुदा परस्ती
खुदा कहाँ हो तुम
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
ReplyDeleteआज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
मेरी पंसन्दीदा कविताओं में से एक ..... वाह वाह वाह
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